शपत लिया जब भगतसिंह ने जलते अंगारों से गूँज उठी थी | भगत सिंह ने जेल में क्या लिखा था |

शपत लिया जब भगतसिंह ने जलते अंगारों से गूँज उठी थी



शपत लिया जब भगतसिंह ने जलते अंगारों से गूँज उठी थी,
 कण-कण तब इंकलाब के नारों से।।
सुखदेव, राजगुरु के संग करने चले आगाज़ नया,
 कही आज़ादी लेकर रहेंगे, लिखेगें इतिहास नया ।।

मारी गोली सॉण्डर्स को थी बड़े सोच विचारों से,
ले लिया बदला तीनों ने लाला जी के हत्यारों से..।।

फेंकी बम असेम्बली के फ़िर खाली स्थानों पर,
ताकि आवाज़ सुनाई दे अंग्रेजी बहरी कानों पर ।।

भाग सकते थे असेम्बली से पर इसका प्रतिकार किया,
ख़ुद ही जेलों में जाना तीनों ने स्वीकार किया।।

पता था इनको बाद में इसके फाँसी होने वाली है ,
 जंग-ए-आज़ादी में अब क़ुर्बानी होने वाली है ।।

गायी जेल में रंग दे बसंती और भूख हड़ताल किया,
 जेल में रहकर भी अंग्रेज़ों का जीना बेहाल किया ।।

माता से बोले भगत की तुम ना आँसू बहाओगी,
आज़ादी के हर दीवाने में, माँ तुम मुझको पाओगी

23 मार्च सन इक्कतीस की वो काली सुबह आ गयी,
 स्वयं काल की भी रूह थी उस दिन घबरा गयी ।।

लटके जब वो फाँसी में खुद रस्सी भी रोयी होगी,
 भारत माता भी संग में तीन बेटों को खोयी होगी।।

पीछे ना हटे ये तीनों अपने दिए गए उन वादों से ,

डोल गया था ब्रिटिश शासन बस इनके इरादों से ।।

इनकी अमर कहानी हमको बात यही सिखलाती है,
वीरों की कुर्बानी जग में व्यर्थ नहीं कभी जाती है ।।🙏🏻❤️

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