तेरी चाहत का वो मौसम सुहाना याद आया है,
तेरा मुस्कुरा करके वो नजरें झुकाना याद आया है,
जो सावन की काली घटा सी छाई रहती थी,
उन जूलफों का चेहरे से हटना याद आया है,
तुझे छेड़ने की खातिर जो अक्सर गुनगुनाता था,
वो नगमा आशिकाना आज फिर याद आया है,
मेरी साँसें उलझती थी तेरे कदमों की तेजी में,
तेरा मुड़-मुड़ कर आना और जाना याद आया है,
तेरा लड़ना झगड़ना और मुझसे रूठ कर जाना,
वो तेरा रूठ कर खुद मान जाना याद आया है,
ना रस्ते हैं ना मंजिल है मिजाज भी है अावारा,
तेरे दिल में मेरे दिल का ठिकाना याद आया है,
जिसके हर लफज में लिपटी हुई थी मेरी कई रातें,
आज तेरा वो आखिरी खत हथेली पर जलाया है।
~ श्याम तनहा
सिर्फ दीवारों का ना हो घर
सिर्फ दीवारों का ना हो घर कोई,
चलो ढूंढते है नया शहर कोई।
फिसलती जाती है रेत पैरों तले,
इम्तहाँ ले रहा है समंदर कोई।
काँटों के साथ भी फूल मुस्कुराते है,
मुझको भी सिखा दे ये हुनर कोई।
लोग अच्छे है फिर भी फासला रखना,
मीठा भी हो सकता है जहर कोई।
परिंदे खुद ही छू लेते हैं आसमाँ,
नहीं देता हैं उन्हें पर कोई।
हो गया हैं आसमाँ कितना खाली,
लगता हैं गिर गया हैं शज़र कोई।
हर्फ़ ज़िन्दगी के लिखना तो इस तरह,
पलटे बिना ही पन्ने पढ़ ले हर कोई।
कब तक बुलाते रहेंगे ये रस्ते मुझे,
ख़त्म क्यों नहीं होता सफर कोई।
~राकेश कुशवाहा
मुश्किल है किसी का साथ निभाना भी।
हकीक़त भी यहीं है और है फ़साना भी,
मुश्किल है किसी का साथ निभाना भी।
यूँ ही नहीं कुछ रिश्ते पाक होते हैं,
पल में रूठ जाना भी पल में मान जाना भी।
लिहाज़ नहीं दिखता की हो बेग़ैरत तुम,
लाज़िम है किसी एक वक़्त में शरमाना भी।
मोहब्बत हो शहर में इश्क़ हर दिल में हो,
जरूरी है दीवानी भी जरूरी है दीवाना भी।
जरा सा सोच-समझ के करना बातें आपस में,
होने लगे हैं आजकल के बच्चे सयाना भी।
झूठ और सच बता सकता हूँ तेरे चेहरे से,
आया अब तक नहीं एक राज़ छुपाना भी।
- प्रभाकर "प्रभू"
ज़िन्दगी की राह में कई ज़िंदा अहसास हुए
ज़िन्दगी की राह में कई ज़िंदा अहसास हुए।
दूर हुए जितना उनसे, उतना उनके पास हुए।।
घुल गए सपनों में कुछ, कुछ ने दिल में पनाह ली।
कुछ दे गए दगा हमें, कुछ पे हम विश्वास हुए।।
आई जब भी हवायें, दिल की खिड़कियां खोली।
अंधेरों में करके दफ़न, खुद उजियारे के खास हुए।।
बिखरे हुए पन्नों पर अक्स नजर आते हैं।
कुछ ने खुशबू दी हमको, कुछ सूखे गुलाब हुए।।
बेख़ौफ़ आवारा मजनूं कुछ, कुछ बड़े शर्मसार थे।
उजाड़ करके ज़िन्दगी खुद बड़े आबाद हुए।।
यूँ ही दिन निकलते हैं, यूँ ही रातें आती है।
यूँ ही दिन निकलते हैं, यूँ ही रातें आती है।
रुलाते अंदर ही अंदर, झूठी मुस्कान है हम।
उड़ते हुए पंछी बने, बहते हुए दरिया बने।
हर तरफ एक ही शोर, दर्द की दुकान है हम।
बजाई मन्दिर में घंटियां, हुई पूजा अर्चना।
इक गुल नहीं दिया हमें, उजड़े गुलदान है हम।
बंद है पिटारे में कई नन्हे नन्हे अरमान।
दिलाते हैं विश्वास कि इक तूफ़ान है हम।
इसलिए ज़िंदा है खुद से वादा कर कर के।
कोशिशें हैं ज़िन्दगी और ज़िंदा इंसान है हम।
शुरू जो प्यार का ये सिलसिला नहीं होता
शुरू जो प्यार का ये सिलसिला नहीं होता,
ये रोग दिल को हमारे लगा नहीं होता।
मैं चाहता हूँ के एक पल को भूल जाऊं उसे,
मगर ख्याल है उनका जुदा नहीं होता।
कभी के मौत की बाँहों में सो गए होते,
हराम गर इसे मअबूत ने किया नहीं होता।
खुशी से ज़िंदगी अपनी भी काट गई होती,
वफ़ा के नाम पे धोखा अगर मिला नहीं होता।
वो कब्र पे मेरी दो अश्क ही बहा देते,
कसम खुदा की हमें फिर गिला नहीं होता।
कुछ और उनकी भी मजबूरियां रही होंगी,
यूँ ही तो कोई सनम बेवफा नहीं होता।
वो इस तरह से भुलाते ही क्यों हमें जाफर,
ख़राब गर ये मुक़द्दर मेरा नहीं होता।
-जाफर बिजनौरी
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अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे,
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे ।
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे ।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे ।
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बहुत याद आते है
बहुत याद आते है
न जाने वो क्यों इतना याद आते है ,
उसकी सूरत आँखों से क्यों नहीं निकल पाती है ,
जितना भुलाऊँ उसको उतना याद आती है ..
ज़िन्दगी का सफर
यह अनजान सफर और अनजान है हम।
पहचाने सभी फिर भी गुमनाम है हम।
जलाते चिराग कभी तो हो किस्मत रूबरू।
वक्त ने पोती कालिख बोला नादान है हम।
यूँ ही दिन निकलते हैं, यूँ ही रातें आती है।
रुलाते अंदर ही अंदर, झूठी मुस्कान है हम।
उड़ते हुए पंछी बने, बहते हुए दरिया बने।
हर तरफ एक ही शोर, दर्द की दुकान है हम।
बजाई मन्दिर में घंटियां, हुई पूजा अर्चना।
इक गुल नहीं दिया हमें, उजड़े गुलदान है हम।
बंद है पिटारे में कई नन्हे नन्हे अरमान।
दिलाते हैं विश्वास कि इक तूफ़ान है हम।
इसलिए ज़िंदा है खुद से वादा कर कर के।
कोशिशें हैं ज़िन्दगी और ज़िंदा इंसान है हम।
मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ
मेरी ये जिद नहीं मेरे गले का हार हो जाओ,
अकेला छोड़ देना तुम जहाँ बेज़ार हो जाओ।
बहुत जल्दी समझ में आने लगते हो ज़माने को,
बहुत आसान हो थोड़े बहुत दुश्वार हो जाओ।
मुलाकातों के वफ़ा होना इस लिए जरूरी है,
कि तुम एक दिन जुदाई के लिए तैयार हो जाओ।
मैं चिलचिलाती धूप के सहरा से आया हूँ,
तुम बस ऐसा करो साया-ए-दीवार हो जाओ।
तुम्हारे पास देने के लिए झूठी तसल्ली हो,
न आये ऐसा दिन तुम इस कदर नादार हो जाओ।
तुम्हें मालूम हो जायेगा कि कैसे रंज सहते हैं,
मेरी इतनी दुआ है कि तुम फनकार हो जाओ।
मेरे सवाल का मुझसे जवाब माँगे है
रुखों के चाँद लबों के गुलाब माँगे है,
बदन की प्यास बदन की शराब माँगे है।
मैं कितने लम्हे न जाने कहाँ गँवा आया,
तेरी निगाह तो सारा हिसाब माँगे है।
मैं किस से पूछने जाऊं कि आज हर कोई,
मेरे सवाल का मुझसे जवाब माँगे है।
दिल-ए-तबाह का यह हौसला भी क्या कम है,
हर एक दर्द से जीने की ताब माँगे है।
बजा कि वज़ा-ए-हया भी है एक चीज़ मगर,
निशात-ए-दिल तुझे बे-हिजाब माँगे है।
~जाँ निसार अख़्तर
वो हर रोज गुजरकर तेरी गली से जाना याद आता है
वो हर रोज गुजरकर तेरी गली से जाना याद आता है,
खुदा ना खास्ता वो तेरा मिल जाना याद आता है।
यूँ ही गुजर गया वो जमाना तुम्हारे इन्तजार का,
आज भी मुझे वो गुजरा जमाना याद आता है।
सुना है कि आज भी हमारी बातें करते है लोग,
आज भी सबको वो अपना अफसाना याद आता है।
तुम भी मुस्कुराती हो बेवजह अक्सर आईने में,
सुना है तुमको भी अपना ये दीवाना याद आता है।
तब तुमसे मिला करते थे छुप छुप के हम,
हर आहट से तेरा वो घबराना याद आता है।
मैं शुक्रगुजार हूँ उन सर्द हवाओं का आज भी,
वो ठंड में हम दोनों का लिपट जाना याद आता है।
आज भी जब मैं मुस्कुराता हूँ कभी आईने में,
मुझे देखकर तेरा वो मुस्कुराना याद आता है।
बस यादें ही रह गयी और कुछ न बचा यहाँ,
कभी तेरा हँसाना कभी सताना याद आता है।
~हिमांकर अजनबी
अंधेरों को भी लोग, उजाला समझ लेते हैं
अंधेरों को भी लोग, उजाला समझ लेते हैं,
शातिरों को वो, अपना सहारा समझ लेते हैं।
मैं आज तक न समझ पाया खुद को यारो,
लोग हैं कि खुद को, क्या क्या समझ लेते हैं।
क़त्ल करते हैं बड़ी ही मासूमियत से वो,
पर लोग हैं कि उनको बेचारा समझ लेते हैं।
थमा रखी है पतवार फरेबियों के हाथों में,
लोग हैं कि भंवर को, किनारा समझ लेते हैं।
कपट की चाल ही तोड़ती है रिश्तों को "मिश्र",
लोग तो इसको ही, अपनी अदा समझ लेते हैं।
~ शांती स्वरूप मिश्र
हमें प्यार की भाषा नहीं आती अजनबी
हमें प्यार की भाषा नहीं आती अजनबी,
यूँ आँखों से ये बातें बनाया न कीजिए।
ज़रा नादान हैं हम अभी इश्क में सनम,
यूँ सबक इश्क़ के हमें पढ़ाया न कीजिए।
न रोका कीजिए हमें राहों में इस तरह,
यूँ पकड़ के कलाई हमें सताया न कीजिए।
पत्थरों के हैं मौसम काँच के हैं रास्ते,
ख़्वाबों के इस शहर में ले जाया न कीजिए।
हम तुम्हारे हैं तो हो जाएंगे तुम्हारे,
यूँ मोहब्बत को सरे-आम दिखाया न कीजिए।
न कीजिए तारीफ हर बात में हमारी,
महफ़िलों में ग़ज़लें यूँ गाया न कीजिए।
होता है जिक्र साथ जो तुम्हारा और मेरा
बेहताशा इस कदर मुस्कुराया न कीजिए।
सुना है पूछते सब आपसे नाम हमारा,
गुजारिश है साहिब किसी से बताया न कीजिए।
हम डरते हैं बदनाम हो जाने से जरा,
मगर गुमनाम भी हमें बताया न कीजिए।
हिमांकर अजनबी
ना गौर कर मेरे तरकीब-ए-मुहब्बत पर
ना गौर कर मेरे तरकीब-ए-मुहब्बत पर,
काबिल-ए-गौर हैं मेरी तहरीरें मुहब्बत पर।
यूं तो इश्क दो दिलों के हिफाजत का मसला है,
पर हो रकाबत, चलती है शमशीरें मुहब्बत पर।
ये आग सीने में लगती है, धुआं भी नहीं उठता,
जलते-बुझते रहें है कई सरफिरे मुहब्बत पर।
इश्क ने झिंझोड़े है कई बादशाहों के महल,
पर कायम रहें हैं कई छत शहतीर-ए-मुहब्बत पर।
बंदिशों का दस्तूर तो सदियों पुराना है मगर,
बंधती-टूटती रही है ये जंजीरें मुहब्बत पर।
यूं तो हो गए निकम्मे कितने आदमी काम के,
पर चमके हैं कई गालिब-मीरे मुहब्बत पर।
यूं तो दरिया है इश्क तैरते भी हैं सारे,
मगर रहते हैं प्यासे कितने जजीरे मुहब्बत पर।
हमने तो अपनी ज़िन्दगी तमाम कर दी
हमने तो अपनी ज़िन्दगी तमाम कर दी,
अपनी तो हर साँस उनके नाम कर दी।
सोचा था कि कभी तो गुजरेगी रात काली,
पर उसने तो सुबह होते ही शाम कर दी।
समझ पाते हम मोहब्बत की सरगम को,
उसने सुरों की महफ़िल सुनसान कर दी।
कर लिया यक़ीन हमने भी उसके वादों पे,
मगर उसने तो बेरुखी हमारे नाम कर दी।
हम मनाते रहे ग़म अपनी मात पर चुपचाप,
मगर उसने तो मेरी चर्चा सरे-आम कर दी।
ये खुदगर्ज़ी ही आदमी की दुश्मन है "मिश्र",
जिसने इंसान की नीयत ही नीलाम कर दी।
~ शांती स्वरूप मिश्र
हमने यहाँ
ग़ज़ल शायरी के साथ ही
प्यार शायरी ,
दोस्ती शायरी ,
ग़म शायरी और
मतलबी शायरी को संग्रह किया है. आप उन्हें भी पढ़ सकते है और दोस्तों के साथ शेयर कर सकते है !! सभी शायरी इंटरनेट की दुनिया में लोकप्रिय है, इनके रचनाकार का नाम पता नहीं चल सका !! अगर आपको लेखक का नाम मालूम हो तो ज़रूर बताएं
, शायरी के साथ शायर का नाम लिखने में हमें ख़ुशी होगी !!
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अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
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अगर तुम न होते तो ग़ज़ल कौन कहता! तुम्हारे चहरे को कमल कौन कहता!
यह तो करिश्मा है मोहब्बत का! वरना पत्थर को ताज महल कौन कहता!
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